सूरजपुर। जिले की स्वास्थ्य सेवाओं का हाल दिन-ब-दिन बिगड़ता जा रहा है। कभी रास्ते में डिलीवरी की खबरें, तो कभी सरकारी दवाइयों का खुले में फेंका जाना—यहाँ तक कि अस्पताल की फर्श पर प्रसव तक की नौबत आ जाती है। सवाल ये है कि जब स्वास्थ्य सुविधाएँ लगातार चरमरा रही हैं, तो जिम्मेदार अधिकारी आखिर कर क्या रहे हैं?
दरअसल, विभाग का फोकस सिस्टम सुधारने के बजाय अपने कर्मचारियों की कुर्सी बचाने पर ज्यादा नजर आता है। सिविल सर्जन कार्यालय सूरजपुर में पदस्थ सहायक ग्रेड-2 (लेखपाल) संजय सिन्हा का 26 जून 2025 को प्रदेश स्तर से तबादला सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पटना, जिला कोरिया किया गया था। खास बात ये है कि पटना उनका गृह क्षेत्र भी है। लेकिन चौंकाने वाली बात ये है कि वे अब तक सूरजपुर छोड़ने को तैयार ही नहीं हैं।
सूत्रों के मुताबिक, लेखपाल साहब ने विभाग को पत्र लिखकर तबीयत खराब होने का बहाना बना दिया। इतना ही नहीं, उन्होंने ये भी लिख डाला कि उनके जाने से काम ठप हो जाएगा। अब बड़ा सवाल उठता है—क्या जिला अस्पताल का पूरा सिस्टम सचमुच सिर्फ एक ही कर्मचारी पर टिका है? और अगर हाँ, तो बाकी कर्मचारी आखिर कर क्या रहे हैं?
लोगों में चर्चा ये भी है कि बिना पैरवी मंत्रालय से हुआ ये तबादला अब रहस्यमयी तरीके से अटका पड़ा है। कहीं यह पूरा मामला किसी बड़े खेल का हिस्सा तो नहीं? क्या लेखपाल साहब विभागीय दस्तावेजों की ऐसी चाबी अपने पास रखते हैं, जिसे उजागर होने से रोकने के लिए अफसर और नेता तक उनके साथ खड़े हैं?
विशेषज्ञों की मानें तो हर विभाग में किसी भी कर्मचारी का कार्यकाल अधिकतम तीन साल तय है। लंबे समय तक एक ही पद पर बने रहने से भ्रष्टाचार पनपने का खतरा बढ़ जाता है। चर्चा तो यहाँ तक है कि लेखपाल साहब नेताओं और कुछ अफसरों की छत्रछाया में हैं, और यही वजह है कि विभाग स्वास्थ्य सेवाओं को सुधारने की बजाय उनकी कुर्सी बचाने में जुटा हुआ है।
इधर, इस मामले में जानकारी लेने के लिए मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी कपिल देव पैकरा से मोबाइल पर संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया।
अब जनता के सीधे सवाल
- जब स्वास्थ्य सेवाएँ पहले ही रसातल में जा चुकी हैं, तो विभाग आखिर कब जागेगा?
- क्या सचमुच सूरजपुर की पूरी व्यवस्था सिर्फ एक लेखपाल पर निर्भर है?
- और अगर हाँ, तो असली जिम्मेदार कौन—लेखपाल, अफसर या पूरा स्वास्थ्य विभाग?
साफ है, जब तक विभाग लापरवाही और रसूख की इस गठजोड़ से बाहर नहीं निकलता, तब तक मरीजों की जिंदगी दांव पर लगाकर कुर्सी बचाने का खेल ऐसे ही चलता रहेगा।