स्वामी आत्मानंद विद्यालय भर्ती में बड़ा खुलासा , अधिकारी ने बेटी को दिलाई नौकरी, पारदर्शिता पर उठे सवाल!

बालोद / डौंडी स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट विद्यालयों में संविदा शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया एक बार फिर विवादों में है। जिस पारदर्शिता और निष्पक्षता की उम्मीद इस योजना से की जा रही थी, वह अब सवालों के घेरे में है। कई अभ्यर्थियों ने आरोप लगाया है कि भर्ती में पक्षपात हुआ और कुछ पदों पर पहले से तय लोगों को ही चयनित कर लिया गया।

सबसे गंभीर मामला डौंडी विकासखंड का सामने आया है, जहाँ नोडल अधिकारी डी.पी. कोसरे पर अपनी ही पुत्री आकांक्षा कोसरे को स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट अंग्रेजी माध्यम विद्यालय घोठीया में सामाजिक विज्ञान व्याख्याता पद पर चयनित कराने का आरोप है। दिलचस्प बात यह है कि कोसरे स्वयं आरक्षित वर्ग से हैं, जबकि उनकी पुत्री को अनारक्षित श्रेणी में चयनित किया गया — जो छत्तीसगढ़ शासकीय सेवा आचरण नियम, 1965 के नियम 3(1) का उल्लंघन माना जा सकता है।

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इस नियम के अनुसार, “प्रत्येक सरकारी सेवक को अपने पद का उपयोग निजी लाभ, परिजन या किसी अन्य व्यक्ति के हित के लिए नहीं करना चाहिए।”
इसी के साथ, नियम 4(2) यह भी स्पष्ट करता है कि “यदि किसी अधिकारी का किसी विषय में व्यक्तिगत हित हो, तो उसे उस विषय की प्रक्रिया से स्वयं को अलग कर लेना चाहिए।”

इन प्रावधानों के बावजूद नोडल अधिकारी की ओर से न तो स्वयं को अलग करने की सूचना दी गई और न ही विभाग की ओर से कोई प्रतिबंधात्मक कार्रवाई की गई।

भर्ती प्रक्रिया 8 सितंबर 2025 को सम्पन्न हुई थी, और उसी दिन चयन सूची जारी की जानी थी। लेकिन सूची रोकी गई, और कुछ दिनों बाद जो सूची आई, उसमें कई योग्य उम्मीदवारों के नाम हटा दिए गए थे। “युक्तिकरण” के नाम पर पदों की संख्या बदली गई और कुछ अपात्र अभ्यर्थियों को भी सूची में जगह मिल गई।

इस पूरी प्रक्रिया ने अभ्यर्थियों में गहरा असंतोष पैदा किया है। उनका कहना है कि मेहनत और योग्यता के बजाय “संबंध और प्रभाव” ने चयन में भूमिका निभाई। स्थानीय नागरिकों ने इस मामले में जांच समिति गठित करने और जिला शिक्षा अधिकारी से जवाब मांगने की मांग की है।

कानूनी दृष्टि से देखा जाए तो यह मामला न केवल हितों के टकराव (Conflict of Interest) का है, बल्कि यह लोकसेवक आचरण संहिता का भी उल्लंघन प्रतीत होता है। भारतीय दंड संहिता की धारा 166 (लोक सेवक द्वारा विधि का उल्लंघन) के तहत भी यदि किसी अधिकारी ने जानबूझकर अपने पद का दुरुपयोग किया है, तो यह दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है।

🟠 कानून क्या कहता है:

  • शासकीय सेवा आचरण नियम 1965, नियम 3(1) – निजी हित के लिए पद का दुरुपयोग वर्जित
  • नियम 4(2) – हितों के टकराव की स्थिति में अधिकारी को स्वयं को अलग करना होगा
  • IPC धारा 166 – लोकसेवक द्वारा कानून की अवहेलना पर दंड का प्रावधान

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